Civic volunteers have been involved in serious crimes in Bengal before
Civic volunteers have been involved in serious crimes in Bengal before

बंगाल में पहले भी गंभीर अपराधों में शामिल रहे हैं सिविक वॉलिंटियर

कोलकाता: पश्चिम बंगाल में सिविक वॉलंटियर्स की भूमिका और शक्ति को लेकर हाल के वर्षों में कई सवाल उठे हैं। हावड़ा के आमता में हुए अनीस खान हत्याकांड से लेकर आरजी कर मेडिकल कॉलेज की घटना तक, सिविक वॉलंटियर्स का नाम विवादों में घिरा है। इस बार, आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला डॉक्टर की दुष्कर्म के बाद हत्या मामले में गिरफ्तार सिविक वॉलंटियर के खिलाफ गंभीर आरोप लगे हैं। कई लोग सवाल उठा रहे हैं कि एक सिविक वॉलंटियर होने के बावजूद, इन व्यक्तियों को इतनी शक्ति और प्रभाव कैसे प्राप्त हुआ?

पश्चिम बंगाल में सिविक वॉलंटियर्स के खिलाफ विभिन्न आरोप लगे हैं, जिनमें से कई आरोप बेहद गंभीर हैं। इन आरोपों में भ्रष्टाचार, धमकी देना, और यहां तक कि चुनाव के समय सत्ताधारी दल के लिए काम करना शामिल है। कई बार देखा गया है कि ये सिविक वॉलंटियर्स पुलिस से भी अधिक रौब दिखाते हैं। इससे लोगों में यह धारणा बन रही है कि सिविक वॉलंटियर्स, सत्ताधारी दल के प्रभाव में हैं, जो इन्हें इस प्रकार की शक्ति प्रदान करता है। भाजपा नेता तमोघ्न घोष के मुताबिक, “सिविक वॉलंटियर्स को नियुक्त ही इसलिए किया जाता है क्योंकि वे तृणमूल नेताओं के संरक्षण में होते हैं। वे दादाओं के गुंडों की तरह काम करते हैं।”

दरअसल 2011 में राज्य की सत्ता हासिल करने के एक साल बाद ममता बनर्जी सरकार ने कोलकाता पुलिस और बंगाल पुलिस में नागरिक स्वयंसेवकों अथवा सिविक वॉलिंटियर्स का पद सृजित किया था। वर्तमान में राज्य में सवा लाख के करीब नागरिक स्वयंसेवक हैं। ममता सरकार किसी निर्णय के पीछे दो उद्देश्य थे पहले पुलिस महक में संख्या बल की कमी की भरपाई करना तथा दूसरा बेरोजगार युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराना यह स्वयंसेवक मुख्य रूप से पुलिस के काम में हाथ बंटाते हैं। आमतौर पर इस पद के लिए सत्तारूढ पार्टी के कार्यकर्ताओं को ही तरजीह दी जाती है जिन्हें पार्टी के बड़े नेताओं का शह प्राप्त होता है जिसके चलते वे कुछ ज्यादा ही बेखौफ हो जाते हैं।

विपक्ष का आरोप है कि पुलिस बल में कमी के कारण सरकार को सिविक वॉलंटियर्स पर अधिक निर्भर होना पड़ता है, जिसके चलते उनके अधिकार और शक्ति बढ़ते जा रहे हैं। हालांकि, सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस इन आरोपों को खारिज करती है। तृणमूल नेता शांतनु सेन ने कहा, “सिविक वॉलंटियर्स बहुत कम वेतन पर काम करते हैं और वे समग्र रूप से बहुत अच्छा सेवा प्रदान करते हैं।”

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जब इस बल का गठन हुआ था, तब इसे पुलिस बल की सहायता के लिए बनाया गया था। इनका मुख्य कार्य यातायात नियंत्रण और बड़े आयोजनों में भीड़ को संभालना था। प्रारंभ में, सिविक वॉलंटियर्स की नियुक्ति अनुबंध के आधार पर होती थी, जिसे हर छह महीने में नवीनीकृत किया जाता था। लेकिन अब इस पद के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता को आठवीं पास कर दिया गया है और इनका मासिक वेतन नौ हजार रुपये होता है। विपक्षी पार्टियां सिविक वॉलंटियर्स की भर्ती प्रक्रिया में भी गड़बड़ी के आरोप लगाते रहे हैं। 2023 में, बांकुरा पुलिस द्वारा प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को पढ़ाने के लिए सिविक वॉलंटियर्स की नियुक्ति को लेकर विवाद हुआ था। इसके चलते मामला अदालत तक पहुंचा था।

कलकत्ता हाई कोर्ट के निर्देश पर मार्च 2023 में राज्य पुलिस ने सिविक वॉलिंटियर्स को लेकर गाइडलाइन जारी की थी जिसमें सिविक वालंटियर्स के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का स्पष्ट उल्लेख था। गाइडलाइन के मुताबिक सिविक वालंटियर्स ट्रैफिक कंट्रोल करने, भीड़ को प्रबंधित करने, अवैध पार्किंग को रोकने और विभिन्न त्योहारों पर लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने में पुलिस की सहायता करने की भूमिका में होंगे। यह स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि सिविक वालंटियर्स को कानून और व्यवस्था का कोई जिम्मेदार कार्य नहीं दिया जा सकता है।

स्पष्ट दिशा निर्देशों के बावजूद सिविक वॉलिंटियर्स को लेकर कई बार विवाद हो चुके हैं और मामला कोर्ट तक पहुंच पहुंच चुका है। अब यह देखना होगा कि लगातार विवादों में घिरते रहे सिविक वॉलिंटियर्स को लेकर राज्य सरकार क्या रुख अपनाती है?

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