नई दिल्ली: उत्तराखंड के चमोली जिले (Uttarakhand’s Chamoli District) में रविवार को ग्लेशियर टूटने (Glacier burst) से हुई तबाही हर तरफ ‘गंभीर निशान’ छोड़ गई है.मीडिया के पास हाई रेजोल्यूशन इमेज हैं जो ग्लेशियर टूटने की घटना का सिलसिलेवार मंजर पेश करती हैं. पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में आई इस तबाही में 30 लोगों की मौत हुई है जबकि 170 लोग अभी लापता हैं. पहले और बाद की तस्वीरों से हिमस्खलन (Avalanche) की भयावहता को साफतौर पर देखा जा सकता है.
6 फरवरी की एक फोटो में बर्फ से ढंकी त्रिशाला ग्लेशियर के हिस्से को देखा जा सकता है लेकिन हिमस्खलन के बाद, 8 फरवरी को बर्फ का एक पूरा हिस्सा गायब है.
इसी तरह के बदलाव हिमस्खलन की उत्पत्ति के स्थान से कुछ किलोमीटर दूर भी देखे जा सकता है. यह क्षेत्र बर्फ से ढंका हुआ था लेकिन हिमस्खलन के बाद इसके असर को साफ तौर पर देखा जा सकता है. त्रासदी के दिन बर्फ का बड़ा हिस्सा गायब हो गया था. पूरे तरह से तबाह हुए तपोवल हाइडल प्लांट के नजदीक की नदी का पानी 6 फरवरी को हरे रंग का था लेकिन 8 फरवरी को यह ब्राउन कलर के कीचड़ से भर गया था.पूरे क्षेत्र के लांग शॉट से हुई तबाही का अंदाजा लगाया जा सकता है. 6 फरवरी को हिमस्खलन के एक दिन पहले, तपोवन हाइडल प्लांट को देखा जा सकता था, इसके बाद हिमस्खलन ने सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया और इसके कारण जमीन धंसकने की तस्वीरों में देखा जा सकता है. 8 फरवरी को जब धूल साफ हुई तो हर तरह मलबा बिखरा हुआ था.
विशेषज्ञों का मानना है कि वैली के धरातल को हिट करने से पहले चट्टान और बर्फ करीब दो किमी की ऊंचाई से गिरी है, इसके कारण पत्थर और बर्फ का तूफान की स्थिति निर्मित हुई.
विशेषज्ञों का मानना है कि चट्टानी हिमस्खलन के कारण बड़ी पैमाने पर गर्मी उत्पन्न हुई होगी और इससे बिखंडन (fragmentation) की स्थिति बनी होगी. बर्फ टूट चुकी थी और पिघल गइ थी जिससे मलबा भी बहकर नीचे आ गया.संसद में उत्तराखंड की प्राकृतिक आपदा पर बयान देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, 5600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ग्लेशियर के मुहाने पर हिमस्खलन हुआ, यह 14 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जितना बड़ा था, इसके कारण बाढ़ की स्थिति बन गई.