जाने-माने अर्थशास्त्री और योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अर्थव्यवस्था को लेकर बड़ा बयान दिया है. उन्होंने गुरुवार को कहा कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब निचले स्तर से धीरे-धीरे ऊपर आ रही है. योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष ने कहा कि संगठित क्षेत्र इस साल के अंत तक महामारी-पूर्व स्थिति में आ सकता है. एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए अहलूवालिया ने कहा कि वह पुरानी संपत्तियों को बाजार पर चढ़ाने (राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन) की योजना के पक्ष में हैं. उन्होंने कहा कि इससे बिजली, सड़क और रेलवे समेत विभिन्न क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा संपत्ति का बेहतर उपयोग होगा और सही मूल्य सामने आएगा.
अर्थव्यवस्था अब उबरने लगी है
अहलूवालिया ने कहा, ”एक अच्छी बात यह है कि अर्थव्यवस्था अब उबरने लगी है और धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है. संगठित क्षेत्र में इस साल के अंत तक महामारी के पहले जैसी स्थिति में आ जाएगा. यह कई क्षेत्रों, सेवा क्षेत्रों आदि के लिये अलग-अलग हो सकता है.” अहलूवालिया ने कहा कि अगर संगठित क्षेत्र में तेजी दिखाई पड़ती है तो असंगठित क्षेत्र भी सही ट्रैक पर आ जाएंगे.
इस दौरान उन्होंने कहा कि जब निजी क्षेत्र में निवेश बढ़ता है तो बेहतर आर्थिक पुनरूद्धार होता है. बता दें कि कमजोर तुलनात्मक आधार और विनिर्माण तथा सेवा क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन से देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून तिमाही में रिकार्ड 20.1 प्रतिशत रही. कोविड-महामारी की दूसरी लहर के बावजूद उच्च वृद्धि दर हासिल की जा सकी है.
‘मैं एनएमपी के पक्ष में हूं’
सरकार के बुनियादी ढांचा को लेकर हाल के कदम के बारे में अहलूवालिया ने कहा, ”मैं एनएमपी (राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन) के पक्ष में हूं. अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया, यह अच्छी चीज है.” कृषि क्षेत्र में सुधारों के बारे में उन्होंने कहा कि कृषि का आधुनिकीकरण बहुत जरूरी है. हालांकि इस दौरन उन्होंने कहा, ”जिस तरीके से तीन कृषि कानूनों को क्रियान्वित किया गया, इससे किसानों के बीच संदेह घर कर गया है.
बता दें कि पिछले महीने, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 6 लाख रुपये की राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन की घोषणा की थी. घोषणा को लेकर सरकार का उद्देश्य है कि पुरानी संपत्तियों को बाजार पर चढ़ाकर ढांचागत क्षेत्र की नई परियोजनाओं के लिये पैसा जमा किया जाए.
बता दें कि कृषि कानून को लेकर मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सैकड़ों किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली की सीमा पर डेरा जमाए हुए हैं. प्रदर्शनकारी किसानों की मांग है कि सरकार तीनों कृषि कानून को रद्द करे. वहीं सरकार का कहना है कि कृषि कानून से संबंधित वह किसी भी मुद्दे पर किसानों के साथ बातचीत के लिए तैयार है.