वर्कआउट के दौरान सिर्फ कपड़े ही सही फिटिंग और क्वॉलिटी के नहीं होने चाहिए, बल्कि ये रूल इस दौरान पहने जाने वाले शूज पर भी लागू होता है। वरना इससे इंजुरी होने की पूरी-पूरी संभावना रहती है। येलो, पर्पल, ब्लू, ऑरेंज जैसे कलर्स नो डाउट बहुत अट्रैक्टिव लगते हैं और आपके जिम आउटफिट्स के साथ कूल और स्टाइलिश भी लगेंगे, लेकिन सिर्फ इस बेसिस पर इनकी खरीददारी करना सही डिसीजन नहीं, कुछ और भी बातें हैं, जो आपको वर्कआउट के लिए शूज खरीदते वक्त ध्यान में रखनी चाहिए। आज के लेख में हम इसी के बारे में जानेंगे।
सबसे पहले इन पर कर लें गौर
- वजन
- आपके पैर का तलवों को शेप मतलब वो फ्लैट हैं या धनुषाकार
- कहां ज्यादा वर्कआउट करते हैं घर के अंदर या बाहर
- डेली वर्कआउट करते हैं या फिर कभी-कभार
जूते खरीदते वक्त इन बातों का रखें ध्यान
जूते की ग्रिप यानी पकड़
रनिंग करते वक्त, लेग वर्कआउट के दौरान या फिर कोई मूव्स करते वक्त फिसलकर गिरने से बहुत भयंकर चोट लग सकती है और लंबे वक्त तक वर्कआउट से ब्रेक लेना पड़ सकता है, तो इससे बचने के लिए जूते खरीदते वक्त उसकी ग्रिप यानी पकड़ पर ध्यान दें। जूते की सोल पर लिखा होता है एंटी स्लिप, नॉन स्लिप या स्लिप रेजिस्टेंट। इसके अलावा हैक्सागन, ट्राएंगल या स्क्वायर सोल पैटर्न से भी इसके ग्रिप का अंदाजा लगाया जा सकता है।
वज़न भी देखें
शरीर के साथ-साथ जूतों के वजन पर भी ध्यान दें। किसी भी तरह के वर्कआउट को करने के लिए हल्के जूते हमेशा बेस्ट होते हैं। रनिंग करनी हो, टहलना हो, जंपिंग एक्सरसाइज करनी हो या फिर किक बॉक्सिंग, लाइट वेट के शूज इन सभी तरह की एक्टिविटीज में आपकी हेल्प करते हैं।
सोल का कलर
जी हां, जूतों की खरीददारी में सोल का कलर भी बहुत मायने रखता है। वैसे तो ज्यादातर ये दो रंगों के ही आते हैं- व्हाइट एंड ब्लैक, तो जान लें कि ब्लैक कलर कार्बन-बेस्ड है, जो हार्ड है और सड़कों पर रनिंग के लिए बेस्ट होता है। वहीं सफेद रंग रबर से बनाया जाता है, जो सॉफ्ट होता है। इसलिए अगर आपको ट्रेडमिल पर स्मूद ट्रैक पर दौड़ना है, तो ये ऑप्शन चुनें।
ट्रायल जरूर लें
इसे बिल्कुल भी मिस न करें। ट्रायल सिर्फ कपड़ों नहीं, बल्कि फुटवेयर्स में भी जरूरी है। जो भी जूता आपने चुना है, उसे एक बार पहनकर शोरूम में ही चलफिर कर देख लें। इससे किसी तरह की परेशानी होगी, तो वो उसी समय पता लग जाएगी, जिससे आपके पास दूसरे शूज लेने का ऑप्शन रहेगा।