राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रहरी: चीन और पाकिस्तान से एकसाथ निपटने को तैयारी भारत

चीन और पाकिस्तान की रणनीति में बदलाव के कारण भारत की सामरिक तैयारी यही है कि युद्ध की स्थिति में वह दोनों मोर्चों पर निपट सके। इसके लिए वायु सेना उन राष्ट्रीय राजमार्गों को रनवे के रूप में आजमा रही है जो युद्ध की स्थिति में काम आ सकें।

देश के सीमावर्ती इलाकों में सुरक्षा को मजबूत बनाने के उद्देश्य से भारतीय वायु सेना लगातार ऐसे कदम उठा रही है। इसी क्रम में भारतीय वायु सेना ने दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले के बिजबिहड़ा इलाके में जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग की साढ़े तीन किलोमीटर लंबी आपातकालीन हवाई पट्टी का रनवे के रूप में उपयोग करते हुए लड़ाकू विमानों, परिवहन विमानों व हेलीकाप्टर उतारकर नौ ट्रायल परीक्षण किए।

इन परीक्षणों के समय सड़क यातायात को वैकल्पिक रास्तों की ओर मोड़ दिया गया था और हवाई पट्टी के दोनों किनारों पर त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था का इंतजाम किया गया था। विदित हो कि पाकिस्तान और चीन की चालों एवं युद्ध संबंधी स्थितियों से मुकाबले को ध्यान में रखकर ही अनंतनाग के बिजबेहड़ा हाइवे पर इस हवाई पट्टी का निर्माण किया गया है।

पाकिस्तान या चीन के विरुद्ध इस हवाई पट्टी से वायु सेना के लड़ाकू विमानों को उड़ान भरने में बहुत कम समय लगेगा। अत्यंत कम समय में भारतीय वायु सेना के फाइटर विमान शत्रु के विमानों का मुकाबला करेंगे। उड़ान भरने के बाद मात्र तीन मिनट में ये पाकिस्तानी सीमा पर और पांच मिनट में पूर्वी लद्दाख में चीन सीमा पर पहुंच जाएंगे।

इस अभ्यास के बाद जम्मू-कश्मीर आपातकालीन लैंडिंग की सुविधा वाला देश का पहला केंद्र शासित प्रदेश बन गया है। वर्तमान में आपातकालीन लैंडिंग की सुविधा देश के तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश एवं राजस्थान में उपलब्ध है। इस अभ्यास में अमेरिका निर्मित चिनूक हेलीकाप्टर को शामिल किया गया। चिनूक को हाल ही में वायु सेना में शामिल किया गया है। इस परीक्षण में दो चिनूक हेलीकाप्टर, रूस निर्मित एक एमआइ-17 और दो उन्नत हल्के हेलीकाप्टर जम्मू-श्रीनगर के राष्ट्रीय राजमार्ग के वानपोह-संगम मार्ग पर उतारे गए थे।

यह राजमार्ग कश्मीर को देश के शेष हिस्सों से जोड़ता है। इस हवाई पट्टी का रणनीतिक उद्देश्यों के साथ-साथ प्राकृतिक आपदाओं के दौरान बचाव एवं राहत कार्यों के लिए भी किया जा सकेगा।

बाड़मेर में अभ्यास
इसी तरह आठ अप्रैल को भारत-पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय सीमा से मात्र 40 किमी की दूरी पर स्थित एयर स्ट्रिप पर वायु सेना के लड़ाकू विमानों ने हुंकार भरी। यह अवसर था वायु सेना के तीन दिवसीय अभ्यास के बाद हवाई पट्टी के हैंड ओवर का। इस कारण इस हवाई पट्टी पर वायु सेना ने छह अप्रैल को ही अपना डेरा डाल दिया था।

अभ्यास के तहत आठ अप्रैल को इस हवाई पट्टी पर तेजस लड़ाकू विमान उतारा गया। इसके बाद जगुआर लड़ाकू विमान व सी-295 तथा एएन-32 जैसे परिवहन विमान उतारे गए। यह अभ्यास सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। यह हवाई पट्टी राजस्थान के बाड़मेर में नेशनल हाइवे-925 ए पर बनी इमरजेंसी लैंडिंग फील्ड है।

सामरिक रूप से महत्वपूर्ण इस हवाई पट्टी का लोकार्पण नौ सितंबर 2021 को किया गया था। इसका उद्घाटन परिवहन विमान सी-130 जे हरक्यूलिस की आपातकालीन लैंडिंग अभ्यास से किया गया। इस दौरान सुखोई-30 एमकेआइ लड़ाकू विमान, सैन्य परिवहन विमान एएन-32 और एमआइ-17 वी हेलीकाप्टर ने भी आपातकालीन लैंडिंग की थी। इस अभ्यास के सफलतापूर्वक संपन्न होने से यह माना गया कि अब देश की सामरिक जरूरतों के हिसाब से यह नया प्रयोग रणनीतिक क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा।

वस्तुत: राष्ट्रीय राजमार्गों पर रनवे सबसे पहले द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी में बनाया गया था। इसके बाद उत्तर कोरिया, ताइवान, स्वीडन, फिनलैंड, स्विट्जरलैंड, पोलैंड एवं चेकोस्लोवाकिया में बनाए गए। स्वीडन में पहला रनवे 1949 में शुरू हो गया था। पोलैंड ने अपने यहां वर्ष 2003 में हाइवे स्ट्रिप तैयार की थी। आस्ट्रेलिया में हाइवे के कई हिस्सों को रनवे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं दक्षिण कोरिया में भी कई जगहों पर हाइवे पर रनवे बनाए जा चुके हैं।

अच्छी बात यह है कि इस श्रेणी में अब भारत भी शामिल हो गया है। उम्मीद की जा रही है कि राष्ट्रीय राजमार्गों पर निर्मित होने वाली ऐसी हवाई पट्टियों की संख्या आने वाले दिनों में और भी बढ़ सकती है, जो देश की सुरक्षा के लिहाज से स्वागतयोग्य है – डा. लक्ष्मी शंकर यादव पूर्व प्राध्यापक, सैन्य विज्ञान विषय

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