सतलुज-यमुना लिंक नहर को लेकर फिर गर्मायी हरियाणा की सियासत…

कई दशकों से चले आ रहे सतलुज यमुना लिंक नहर का मसले को लेकर एक बार फिर से हरियाणा की सियासत में गर्माहट नजर आ रही है। इस मसले को लेकर मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 14 अक्तूबर को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को एक चिट्ठी लिखी और फिर 16 अक्तूबर को इस मसले को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की। इससे पहले 3 अक्तूबर को पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने हरियाणा के मुख्यमंत्री को पत्र लिखते हुए द्विपक्षीय बैठक आयोजित करने का आग्रह किया था और 4 अक्तूबर को इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट का भी एक आदेश आया।

अब इस मसले को लेकर इनैलो के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव व ऐलनाबाद के विधायक चौ. अभय सिंह चौटाला ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को एक चिट्ठी लिखते हुए एस.वाई.एल. के मुद्दे को लेकर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने एवं सर्वदलीय बैठक आयोजित करने की मांग की है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने केंद्र एवं हरियाणा सरकार पर इस मसले को लेकर नकारात्मक रवैये का आरोप लगाया है तो आम आदमी पार्टी के प्रचार समिति के चेयरमैन डा. अशोक तंवर ने कहा है कि यह विवाद कई राज्यों के बीच है, ऐसे में इसको लेकर प्रधानमंत्री को संबंधित राज्यों के साथ विशेष बैठक करनी चाहिए।

गौरतलब है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एस.वाई.एल. मुद्दे को लेकर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को 14 अक्तूूबर को एक चिट्ठी लिखी और इसके बाद 16 अक्तूबर को दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात की थी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इस मामले में प्र्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था। मुख्यमंत्री तथ्यों का हवाला देते हुए कहते हैं सतलुज यमुना लिंक नहर के न बनने से हरियाणा को अब तक 19,500 करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है। 46 साल से सिंचाई का पानी नहीं मिलने से दक्षिण हरियाणा की 10 लाख एकड़ कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर पहुंच गई है। सबसे अहम बात यह है कि पानी के अभाव में राज्य को हर साल 42 लाख टन खाद्यान्न का भी नुकसान हो रहा है। मुख्यमंत्री का कहना है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों को लागू करने की बजाए पंजाब ने वर्ष 2004 में समझौते निरस्तीकरण अधिनियम बनाकर इनके क्रियान्वयन में रोड़ा अटकाने का प्रयास किया। पंजाब पुनर्गठन अधिनियम, 1966 के प्रावधान के अंतर्गत भारत सरकार के आदेश दिनांक 24.3.1976 के अनुसार हरियाणा को रावी-ब्यास के फालतू पानी में से 3.5 एम.ए.एफ. जल का आबंटन किया गया था।

एस.वाई.एल. कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न होने की वजह से हरियाणा केवल 1.62 एम.ए.एफ. पानी का इस्तेमाल कर रहा है। पंजाब अपने क्षेत्र में एस.वाई.एल. कैनाल का निर्माण कार्य पूरा न करके हरियाणा के हिस्से के लगभग 1.9 एमएएफ जल का गैर-कानूनी ढंग से उपयोग कर रहा है। पंजाब के इस रवैये के कारण हरियाणा अपने हिस्से का 1.88 एम.ए.एफ. पानी नहीं ले पा रहा है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को लिखी चिट्ठी में कहा था कि भ वे एस.वाई.एल. नहर के निर्माण के रास्ते में आने वाली किसी भी बाधा या मुद्दे को हल करने के लिए उनसे मिलने को तैयार हैं, लेकिन अभी तक पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान की ओर से इस चिट्ठी के संदर्भ में कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।

भाजपा-जजपा सरकार के नकारात्मक रवैये से अटका हुआ है एस.वाई.एल. का मामला : भूपेंद्र हुड्डा

पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष चौ. भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कहना है कि भाजपा-जजपा सरकार के नकारात्मक रवैये की वजह से आज तक एस.वाई.एल. का मामला जस का तस अटका हुआ है। जबकि फरवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के पक्ष में स्पष्ट फैसला सुनाया था। इसके बाद जुलाई 2020 में बाकायदा उच्चतम न्यायालय की तरफ से पंजाब, हरियाणा और केंद्र सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए थे। हुड्डा का कहना है कि कोर्ट के फैसले के बाद हरियाणा के तमाम दलों ने राष्ट्रपति से भी मुलाकात की।

उसी समय कांग्रेस ने प्रदेश सरकार से सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के साथ प्रधानमंत्री से मिलने का सुझाव भी दिया था। सरकार ने इसके लिए प्रधानमंत्री से वक्त मांगने की बात कही थी, लेकिन आज तक ऐसा कुछ नहीं हुआ। पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा ने कहा है कि कांग्रेस द्वारा बार-बार कहा गया कि पंजाब सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अवहेलना कर रही है। लेकिन हरियाणा सरकार बेनतीजा बैठकें करके समय व्यतीत करती रही। अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा एकबार फिर अपने फैसले को दोहराया गया है, लेकिन हैरानी की बात है कि हरियाणा के हक का पानी लेने की बात को दरकिनार करते हुए मुख्यमंत्री इसे सिर्फ नहर निर्माण का मामला मानकर चल रहे हैं, जबकि एस.वाई.एल. का पानी हरियाणा का हक है और ये प्रदेश की किसानी के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। सरकार को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए ।

यह पानी मिलने से प्रदेश की 10 लाख एकड़ से ज्यादा भूमि पर सिंचाई संभव हो पाएगी। हरियाणा कांग्रेस ने कोर्ट से लेकर हर मंच पर प्रदेश के हक की लड़ाई लड़ी है। कोर्ट में कांग्रेस सरकार ने मजबूती के साथ हरियाणा का पक्ष रखा, जिसके चलते प्रदेश के हक में कोर्ट का फैसला आया। लेकिन इसको अमलीजामा पहनाने के लिए भाजपा सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया। प्रदेश में अक्सर अलग-अलग राजनीतिक दलों के बीच बहस होती है कि कौन-सी पार्टी की सरकार में एसवाईएल बनवाने के लिए कितना काम हुआ, लेकिन बीजेपी हरियाणा के इतिहास की इकलौती ऐसी सरकार है, जिसमें काम आगे बढऩे की बजाय पंजाब के क्षेत्र में बनी-बनाई एसवाईएल नहर को पाट दिया गया। यानी अब तक हरियाणा को उसके हक का पानी दिलवाने के मामले में बीजेपी और बीजेपी-जेजेपी सरकार की भूमिका नकारात्मक रही है।